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रंग चटकीला
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रंग चटकीला

बिखरा-बिखरा रंग चटकीला
बीच में तीतर अलबेला
दिखे ऊपर तीखी चोटी
जिस पर झंडी छोटी,
चौका एक गिरता पानी
जैसे निकली गंगा रानी
आज सुबह जब
उठकर देखा
भोली सूरत प्रभाकर पीला
तब आया एक पुजारी
पहनकर झोला,
बजाया शंख, छिड़का कुमकुम
ढोल बजा और पानी छमछम!!
ढूँढ रहा है बेजान में जान
न इससे कोई अनजान,
हाथ में धड़कन होगी
और इंसान में भगवान

७ जुलाई २००८

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