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ज्योति पर्व– दीप जलाने वाले हैं

 

एकांत

एकांत बँट गया सारा
तेरे ख्यालों में
एक–एक करके आते रहे
मेरे एकांत के कुछ हिस्से
माँगते, छीनते,
अपना हक जमा ले जाते रहे।
बहुत पक्का है तेरा हिसाब भी–
तू आती है,
मुझे एकांत दे जाती है
और फिर भेज देती है
अपने ख्यालों को,
टुकड़े–टुकड़े कर
बाँट ले जाने के लिए,
मुझे,
मेरे एकांत को!!

९ नवंबर २००३

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