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अनुभूति में डॉ आदित्य शुक्ल की कविताएँ—
जीवन यों ही बीत गया
तुम चंदा-सी शीतलता दो
सुख और दुख
यदि मिल जाएँ पंख उधार
लगता है कोई बोल रहा है
 

 

 

यदि मिल जाएँ पंख उधार

बेचैनी-सी छा जाती है, याद आता जब तेरा प्यार।
मन कहता मिल आता तुम से, यदि मिल जाएँ पंख उधार।

याद तुम्हें सावन का झूला, संग हँसना, संग-संग गाना।
शाम ढले सबसे छुपकर, तेरा मुझ से मिलने आना।
सागर तट पर जब हम-तुम, रेतों का महल बनाते थे।
इक दूजे का नाम जहाँ पर लिखते और मिटाते थे।
और कितनी प्यारी यादें, पल भर में होती साकार।
मन कहता मिल आता तुम से, यदि मिल जाएँ पंख उधार।

मैं सिर रखकर गोद में तेरी, चिकुटी करता गालों में।
तुम भी तो खोई रहती थी, मेरे उलझे बालों में।
काट लिया करते थे उँगली खाने और खिलाने में।
तुम यों ही रूठी रहती थी, मैं लग जाता मनाने में।
कितना सुख मिलता था तब, जब करता था तुझ से मनुहार।
मन कहता मिल आता तुम से, यदि मिल जाएँ पंख उधार।

टूटे तारे देख कभी, हम मन ही मन मुसकाते थे।
संग जीने और मरने की तब क़समें भी तो खाते थे।
जीवन की राहें फूल भरी, चाहें पग-पग में हो बाधा।
मैं तेरा साँवरिया गोरी, तू मेरे मन की राधा।
किंतु बैठा मैं मथुरा में, तुम बैठी कालिंदी पार।
मन कहता मिल आता तुम से, यदि मिल जाएँ पंख उधार।

16 जनवरी 2007

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