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अनुभूति में अभिजित पायें की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
आत्मा की पुकार
आतंक
जिंदगी
जीने के बहाने
सरपट दौड़ता वक्त

 

 

जीने के बहाने
 
आ गया हूँ दूर-दूर
कर रहा हूँ सब कुछ
जीने के बहाने।
 
उथल-पुथल जिन्दगी के पथ पर
कुछ पाया, कुछ खोया
फिर भी यह सफर
उस मंजिल की ओर।

अनेक विडम्बनाओं के बावजूद
क्या से क्या नहीं किया
जीने के बहाने।
 
थके हुए इस शरीर को
कोई अज्ञात शक्ति
उस अजात प्रकाश की ओर
 
खिंचता चला जा रहा है
सिर्फ जीने के बहाने।

२४ नवंबर २००८

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