अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में परमजीत कौर रीत की रचनाएँ

नये माहिया में-
खुश्बू का हरकारा

अंजुमन में-
कहीं आँखों का सागर
कहीं मुश्किल
कोई दावे की खातिर
रोटी या फूलों के सपने
हिज्र में भी गुलाब

माहियों में-
माहिये

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

  माहिये

क्या मौज फकीरी की
सरल हवाओं को
कब फिक्र असीरी की

मन का ताना-बाना
चिंता तागे में
उलझाये मत जाना

खामोशी है कहती
बन यादें सावन
आँखों से है बहती

वो आँगन, फूलों की
याद सदा आये
बाबुल-घर झूलों की

मैया की बाहों को
भूल नहीं पाये
माँ-तकना राहों को

खोना क्या, क्या पाना
जीना अपनों बिन
क्या जीना, मर जाना

नदिया सा मन रखना
रज या कंकर हो
हँस-हँसकर सब चखना

नित रूप बदलता है
वक्त के पहिये पे
किसका वश चलता है

कूजागर जाने है
दीपक जीवन में
क्या ठेस मायने है

कूजे पर आन तने
कूजागर हाथों
डोरी तलवार बने

अहसासों के मोती
मन-आँखें-सीपी
धर-धर कर हँस-रोती

१ जून २०१९

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter