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काव्यचर्चा

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कवि की स्वाभाविक विशेषताएँ

स्वाभाविक विशेषताओं का विकास

संवेदना का विकास और अनुभूति की गहनता

अभिव्यक्ति की विविधता

समस्यापूर्ति क्या है

छंद क्या हैं



 

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कवि की स्वाभाविक विशेषताओं का विकास

कविता यात्रा के दूसरे पड़ाव पर यह ढूंढने की कोशिश करते हैं कि कवि के लिये आवश्यक गुण – संवेदना और रचनात्मक रुझान आदि का विकास कैसे किया जाये। कविता लिखने के लिये सबसे आवश्यक है संवेदना को गहराई के साथ महसूस करना यानि अनुभूति की गहनता और दूसरा अनुभव की हुई संवेदना को कुशलता के साथ अभिव्यक्त करना यानि अभिव्यक्ति की व्यापकता।

ये दोनों गुण एक दूसरे पर आश्रित हैं। बिना अनुभूति के अभिव्यक्ति नहीं हो सकती और बिना अभिव्यक्ति के अनुभूति को आकार नहीं दिया जा सकता। परस्पर आधारित इन दो गुणों का साहित्य के क्षेत्र में गहरा महत्व है। इसलिये यहाँ दो विशेष लेखों में इनकी चर्चा विस्तार से करेंगे। अन्य गुण इन दोनों के विकास के लिये साथ–साथ चलते हैं इसलिये उनकी चर्चा बीच–बीच में जरूरत के मुताबिक और अंत में संक्षेप में होती रहेगी।


संवेदना के विस्तार और अनुभूति की गहनता का विकास

कविता लिखने वाला हर व्यक्ति अतिरिक्त संवेदना लेकर पैदा होता है। या इसे यों भी कह सकते हैं कि वह अपनी संवेदना को निखारता रहता है जबकि दूसरे उसे मरने देते हैं। निखरी हुयी संवेदना ही अनुभूति की गहनता है। संवेदना को निखारने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि उद्वेलित करने वाले विषयों पर प्रतिक्रिया न की जाय। उनके विषय में गंभीरता से सोचा जाय, मनन किया जाय और अनुभूति की गहनता प्राप्त करने पर कुछ लिखने की कोशिश की जाय। कुछ कवि भावनात्मक उत्तेजना के समय लिखना पसंद करते हैं। कब लिखा जाय यह बहुत कुछ व्यक्तिगत रूचि पर भी निर्भर कर सकता है।

प्रतिक्रिया न देकर बहुत सी रचनात्मक ऊर्जा बचाई जा सकती है और इसका उपयोग कविता या कहानी लिखने के लिये किया जा सकता है। हां अगर उस विषय का जानकार कोई व्यक्ति सामने है तो प्रश्न पूछ कर संबंधित विषय की जानकारी बढ़ाई जा सकती है। यह जानकारी रचना प्रक्रिया में अत्यंत सहायक हो सकती है।

उदाहरण के लिये अगर कला संग्रहालय का एक सुंदर चित्र देख कर यह कह कर न छोड़ दिया जाय कि यह सुंदर है बल्कि यह सोचा जाय कि यह सुंदर क्यों लग रहा है। क्या इसमें कुछ विशेष रंगों का प्रयोग किया गया है, क्या इसकी रेखाएँ या लय अन्य चित्रों से ंिभन्न है या यह किसी नयी शैली में बनाया गया है, क्या यह किसी पौराणिक कथा पर आधारित है, क्या यह किसी विशेष भावना या विचार को अभिव्यक्त कर रहा है। इस प्रकार के अनेक विचारों से गुज़रते हुए ज्ञान और संवेदना दोनों का विकास होता है। अगर चित्रकार या चित्रकला का कोई जानकार साथ में है तो उस चित्र से संबंधित तमाम रोचक जानकारी इकठ्ठा की जा सकती है सहेज कर रखी जा सकती है जिसे बाद में एक लेख या कविता के रूप में परिवर्तित किया जा सकता है।

इसी तरह जब हम बगीचे में एक सुंदर फूल देखते हैं तो "क्या फूल है!" कहते ही सारी रचनाशीलता का सत्यानाश हो जाता है। यदि थोड़ा रुक कर उसके रंग पर ध्यान दिया जाय पत्तियों को साथ उसके आकार और रंग का संयोजन देखा जाय तो इसका आनंद ही कुछ और है! क्या उस पर ओस की बूँद है या तितली मंडरा रही है या वह क्यारी से बाहर झुका हुआ एक मनोहर लय पैदा कर रहा है? इन सब बातों पर ध्यान देते हुए मन मस्तिष्क में संवेदनशीलता का विकास होने लगता है । जब हम इन विचारों को बार बार गहनता से सोचते हैं तो अनुभूति की गहनता प्राप्त होती है जो हमें रचना प्रक्रिया या रचनात्मक रुझान के लिये तैयार करती है।

केवल वस्तुएँ ही नहीं परिस्थितियाँ और घटनाएँ भी हमें रचनाशीलता के लिये प्रेरित कर सकती हैं। यदि हम प्रतिक्रिया न करते हुए परिस्थितियों और घटनाओं के अनुभव को संवेदना के स्तर पर बदलने की कोशिश करें तो छोटे–छोटे सुख और दुख बड़ी सुन्दर रचनाएँ बन कर सामने आ सकते हैं। कुछ कविताएँ बन सकते हैं, कुछ कहानियाँ बन सकते हैं और कुछ व्यंग्य रचनाएँ।

उदाहरण के लिये अगर रास्ता चलते पैर फिसल जाए और फुटपाथ पर हम गिर जाएँ तो इसको कई तरह से संवेदना के स्तर पर महसूस किया जा सकता है।
1– बेचारगी का दुःख
2– अपमान का गुस्सा
3– व्यंग्य की मस्ती या फिर
4– जहां सब दौड़ भाग रहे थे उस रास्ते पर पल भर को आराम कर लेने का सुख !

यह अलग–अलग व्यक्ति की अपनी मनोदशा और संवेदनशीलता पर निर्भर करता है कि वह इसे किस प्रकार रचना चाहता है। विषय और मनोभावना के आधार पर ही भाषा और शैली का भी चुनाव किया जा सकता है।

प्रत्येक मनोभाव और दृश्य को दिल में सहेज कर रख लेना उसको गहराई से अनुभव करना और उस पर मनन करना काव्य या साहित्य रचना की पहली जरूरत है। दूसरी बड़ी जरूरत होती है उसको सुंदरता से रचना, कहना या लिखना। इसीलिये साहित्य की पहली दो महत्वपूर्ण आवश्यकताएँ हैं अनुभूति और अभिव्यक्ति!

केवल अपनी ही नहीं बल्कि अपने परिवार, मित्रों, पड़ोसियों और राह चलते व्यक्ति की संवेदना से जुड़ कर अविस्मरणीय रचनाएँ लिखी जा सकती है। विकसित संवेदना वाला व्यक्ति न केवल अच्छा कवि होता है बल्कि एक अच्छा इन्सान भी होता है।

संवेदनाओं को विकसित करते समय इस बात का सदा ध्यान रहे कि प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करनी है और इसका प्रयोग केवल रचनात्मक रूप में किया जाना है। विशेष रूप से इसलिये क्यों कि यदि संवेदना व्यक्तिगत स्तर पर व्यक्त होती है तो या तो रोने–धोने मे इस्तेमाल होती है या फिर आलोचना में और ऐसे व्यक्ति को लोग स्वार्थी कहने लगते हैं। रचनाशीलता का तो वहाँ नाम भी नहीं रहता।

संवेदनशीलता विकसित करने का यह सिलसिलेवार तरीका अजीब सा लगता है। निश्चय ही हर कवि इस प्रकार अक्षरशः अपनी संवेदना को विकसित नहीं करता। न ही इस तरह चीज़ों को महसूस करता है। हर व्यक्ति के मन और मस्तिष्क की अलग कार्य प्रणाली हो सकती है। हर व्यक्ति का अलग सामाजिक, भावनात्मक और बौद्धिक स्तर हो सकता है। समय और परिस्थिति के अनुसार भी इसमें भिन्नता हो सकती है। व्यक्ति की संवेदना भी तो अलग हो सकती है।

यही अलगाव, यही भिन्नता एक कवि की रचनाओं को दूसरे कवि की रचनाओं से अलग और विशेष बनाता है और इसी विशेषता के कारण वह कवि साहित्य में विशेष रूप से जाना जाता है। जैसे प्रकृति प्रेमी सुमित्रानंदन पंत या फिर प्रयोगवादी निराला।

यहाँ एक बात फिर से याद रखने की है कि यह जरूरी नहीं कि हर व्यक्ति तुलसीदास या कालिदास की तरह एक प्रसिद्ध कवि बन जाए। इसके लिये एक गहन साधना और लम्बे समय तक काम करने की आवश्यकता होती है। लेकिन कुछ अच्छी कविताएँ हर कोई लिख सकता है अगर लिखना चाहे, शौक हो और अभ्यास करे। तो शौक अगर कविता लिखने का है तो क्यों न अच्छी कविताएँ ही लिखें!

(अगले अंक में अभिव्यक्ति की विविधता)

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