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डॉ. हृदय नारायण उपाध्याय की तीन रचनाएँ-

दर्द
समूह गान
सुरक्षा का प्रश्न

ईमेलः upadhyayhn@yahoo.com

  दर्द

मेरे मन की व्यथा कथा ही कैसे बन जाते गीत
दर्द तुम्हारा यदि न मिलता सजता कैसे संगीत
घायल पक्षी की पीड़ा में जब वाल्मीकि का दर्द मिला
आदिकवि का आदिगान कहकर दुनिया में मान मिला
आग में तपकर जब सोने का रूप निखरता है
तब कुंदन बनकर वह हार गले का बनता है।
ज़हर का प्याला पीकर मीरा दर्द दीवानी कहलाई
तब राधा के कांधा को वह अपना मोहन कर पाई।
दर्द ही ऐसा बंधन है जिससे प्राणी बँध जाता है
तब यह बंधन जन्मों का पावन रिश्ता बन जाता है।
नई शक्ति पाकर प्राणी फिर कर्म क्षेत्र में बढ़ता है
पीकर सुख दुख के घूँटों को वह स्वप्न नया फिर बुनता है।
इन सपनों को सच करने में दुनिया आगे फिर बढ़ती है
और फूलों-सा बनने को काँटों की राह भी चलती है
दुख की काली रजनी ही सुख का प्रभात दे जाती है
हर लेती है मन का विषाद नव चेतन बन छा जाती है।
सच पूछो तो सोच किसी की वंदनीय तब होती है
जब पीड़ा से जुड़कर वह हमदर्द सभी का बनती है।



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सुरक्षा का प्रश्न

रीत रहा है संचित कोष मातृरूपा इस धरा का
हमारे पोषण में
निचुड़ रही है यह तिल-तिलकर
हमें सँवारने में
और हम जो सृष्टि की सर्वोत्तम रचना कहे जाते हैं
इसे ही निरावरण करने का लोमहर्षक खेल रच रहे हैं।
हवा पानी प्रकाश एवं आकाश ही नहीं
अब तो इसका आँचल भी घट रहा है।
बढ़ रहें हैं तो हम
हमारी भूख और हिंसक कारगुज़ारी
समय रहते यदि हम सावधान नहीं हुए
तो रीतती और निचुड़ती यह धरा
आख़िर कब तक हमें सुरक्षित रखेगी।

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समूह गान

धरती अपनी अपना अंबर हम दुनिया की शान
नया इतिहास बनाएँगे नया संसार बसाएँगे।
नया इतिहास बनाएँगे।

हर क्षण हम सब काम करेंगे कण-कण का निर्माण करेंगे
नई उमंगे नई चेतना छात्रों में संचार करेंगे नया इतिहास बनाएँगे
ज्ञान ज्योति विस्तार करेंगे तम का हम सब नाश करेंगे
नए मूल्य और नैतिकता से छात्रों का श्रृंगार करेंगे।
नया इतिहास बनाएँगे।

यह संकल्प अटल है अपना जन-जन का अज्ञान हरेंगे
पथ चाहे जितना हो दुर्गम मंज़िल का संधान करेंगे।
नया इतिहास बनाएँगे।

24 फरवरी 2007

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