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अनुभूति में राहुल शिवाय की रचनाएँ— 

गीतों में-
आग शहर में फैल रही है
झूल जाओ प्राण तज दो
तेरे आने से
दीवारों में बँटा हुआ अब
पतझड़ बीत गया है
बाबू जी का खत आया है
सिर्फ बाँचने लगे समस्या
हम अपनों के मारे
 

 

झूल जाओ प्राण तज दो

झूल जाओ प्राण तज दो
क्यों न बोलें फिर व्यथाएँ

जो हमेशा ही सहेजा
नग्न होकर वह पड़ा था
गिद्ध नर के सामने बस
मान माँसल चीथड़ा था
देह पर ज्यों चल रही हैं
नाग-सी अब भी भुजाएँ

था यही अपराध तन का
वह किसी को भा गया था
खेलने की चीज थी जो
खेलकर छोड़ा गया था
है हुआ अभियोग तन पर
औ घृणा करती दिशाएँ

पाँडवी आक्रोश भी जब
व्यस्त है सबकुछ भुलाकर
नृप बना धृतराष्ट्र सम जब
चुप सभा है सिर झुकाकर
हस्तिनापुर लिख रहा है
कृष्ण बिन जब विवशताएँ

१ फरवरी २०१८

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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