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अनुभूति में राधेश्याम बंधु की
रचनाएँ-

नए गीतों में-
मौन को उत्सव बनाओ
यादों की खुशबू
यादों की निशिगंधा
ये सफेदपोश बादल
रिश्तों का अहसास

गीतों में-
क्यों नदियाँ चुप हैं
कजरारे बादल
जेठ की तपती दोपहरी में
धान रोपते हाथ
धैर्य का कपोत
निष्ठुर बादल
प्यासी नदी
बहुत घुटन है
भारत क्यों प्यासा
शब्दों के पंख

संकलन में-
रूप बादल हुआ

 

धैर्य का कपोत

बाज़ों की बस्ती में
धैर्य का कपोत फँसा
गली-गली अट्टहास
कर रहे बहलिए।

तर्कों की-
गौरेया,
इधर-उधर दौड़ती,
दर्पण से-
लड़ा-लड़ा
स्वयं चोंच तोड़ती।

आस्थाएँ नीड़ों में
पंख फड़फड़ा रहीं,
आँगन के रिश्ते तक हो
गए दुभाषिये।

संयम का
सुआ रोज़,
पिंजड़े से लड़ रहा,
'राम नाम'-
के पथ पर
इंकलाब जड़ रहा।

किसको है ख़बर,
क्रौंच सच का क्यों मर रहा?
बिना पता घूम रहे
मौसम के डाकिये।

२४ फरवरी २००६

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