| गुमसुम गौरैया छज्जे पर बैठी गौरैया गुमसुम 
                  सोच रही कहाँ गई आँगन की बैठकआसन दादी का
 बच्चों का कल्लोल कीमती
 सोना चाँदी-सा
 घर क्या बँटा उदासी सबके सुइयाँ कोंच रही
 घर छोटा लगता थाअब हर कमरा ही घर है
 हर भाई निज द्वीप
 दिलों के बीच समंदर है
 सबकी नज़र दूसरों में ही कमियाँ खोज रही
 गिनी चुनी बातेंहँसना तो ख़ैर अतीत हुआ
 अबकी बार मायके में
 दो दिन ही टिकीं बुआ
 बहिन कुँवारी देख आरसी आँसू पोंछ रही
 कहाँ रोज़ चुग्गाव्यंजन होली दीवाली में
 अब जूठन तक नहीं छोड़ता
 कोई थाली में
 विस्मित गौरैया अपनी ही किस्मत कोस रही
 १ जुलाई २००६ 
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