| अनुभूति में
                    दिनेश सिंह की रचनाएँ- 
					नई रचनाओं में-अकेला रह गया
 चलो देखें
 नाव का दर्द
 प्रश्न यह है
 भूल गए
 मैं फिर से गाऊँगा
 मौसम का आखिरी शिकार
 
 गीतों में-
 आ गए पंछी
 गीत की संवेदना
 चलती रहती साँस
 दिन घटेंगे
 दिन की चिड़िया
 दुख के नए तरीके
 दुख से सुख का रिश्ता
 नए नमूने
 फिर कली की ओर
 लो वही हुआ
 साँझ ढले
 हम देहरी दरवाजे
 
					संकलन में-फूले फूल कदंब-
					
					फिर कदंब फूले
 
					संकलन में-फूले फूल कदंब-
					
					फिर कदंब फूले
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					अकेला रह गया
 बीते दिसंबर तुम गए
 लेकर बरस के दिन नए
 पीछे पुराने साल का
 जर्जर किला था ढह गया
 मैं फिर अकेला रह गया
 
 ख़ुद आ गए
 तो भा गए
 इस ज़िन्दगी पर छा गए
 जितना तुम्हारे पास था
 वह दर्द मुझे थमा गए
 
 वह प्यार था कि पहाड़ का
 झरना रहा जो बह गया
 मैं फिर अकेला रह गया
 
 रे साइयाँ, परछाइयाँ
 मरूभूमि की ये खाइयाँ
 सुधि यों लहकती
 ज्यों कि लपटें
 आग की अँगनाइयाँ
 
 हिलाता हुआ पिंजरा टँगा रह गया
 पंछी दह गया
 मैं फिर अकेला रह गया
 
 तुम घर रहो
 बाहर रहो
 ऋतुराज के सर पर रहो
 बौरी रहें अमराइयाँ
 पिक का पिहिकता स्वर रहो
 
 ये बोल आह-कराह के
 हारा-थका मन कह गया
 मैं फिर अकेला रह गया
 
 ९ जुलाई २०११
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