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अनुभूति में देवेन्द्र शर्मा इंद्र की रचनाएँ-

नए गीतों में-
मैं शिखर पर हूँ

साँझ के कंधे पर

गीतों में-
अब भी जीवित मुझमें
उस शहर से
एक गाथा का समापन
जब जब भी झंझा
मैं तुम्हारी लेखनी हूँ

मैं नवांतर
लौटकर घर चलो खुसरो
हम जीवन के महाकाव्य

  उस शहर से

उस शहर से इस शहर तक
हम कभी जीते कभी मरते रहे,
उस शहर से इस शहर तक,
हम सतत यायावरी करते रहे।

हर सफर में नए चहरों से
धूप, छाँहों से मिला बिछुड़ा किये,
थके पंछी के परों से हम
कभी फैले तो कभी सुकड़ा किए।

राह के अनजान मोड़ों पर
कभी सहमे तो कभी डरते रहे।

इंद्रधनुषी मेघ हंसों को
खोज थी अमृत सरोवर की,
बर्फ की चादर रहे बुनते
छाँव में जलते सरोवर की।

साँस के रीते सुधाघट को
हम सुरा या गरल से भरते रहे।

अब किसे जाकर उलहना दें
हम न क्यों चम्पक, कमल, पाटल हुए?
किसी माली की निगाहों से-
रह गए क्यों हम अदेखे, अनछुए?

विजन के निर्गन्ध किंशुक हम
वृन्त पर खिल धूल में झरते रहे।

७ सितंबर २००९

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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