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अनुभूति में अवध बिहारी श्रीवास्तव की रचनाएँ-

नए गीतों में-
ऐसी पछुआ हवा चली
बेचैनी का मौर
राजा रानी बैठ झरोखे
सिंहासन
 

गीतों में-
दुख का बेटा
बरस रही वस्तुएँ
बादल मत आना इस देश
मंडी चले कबीर
मैके की याद
लड़कियाँ

 

  बेचैनी का मौर

बेचैनी का मौर समय के
माथे पर।

सूरज, रात खरीद रहा
बाज़ारों में।
कंधा शामिल होता है,
हत्यारों में।
'थाली में विष होगा'
यह फेरों का डर।

बारूदी सुरंग का
खतरा है मन में।
'समय' खड़ा है कवच
ओढ़कर आँगन में।

उबल रहा है बड़नावल
सबके भीतर।

लकवाग्रस्त उमर
लेटी है बिस्तर पर।
बेटा, बहु, चिकित्सक,
सोचें, तेज ज़हर।

घातों में दामाद, बेटियों
वाला, घऱ।

२५ जनवरी २०१०

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