कविताओं के विस्तृत नभ में
सूरज का कर उजियाला
चिर निद्रा में चला गया कवि
मधुशाला लिखने वाला
मंदिर मस्जिद एक करा कर
जात पात का भेद मिटा
सच्चाई की राह दिखाती
है दुनिया को मधुशाला।।१।।
लाख पियें दो लाख पियें पर
कभी नहीं घटने वाला
जीवन रस की सतत धार से
अक्षय मधु का यह प्याला
अर्पण तर्पण करता तुझको
पढ़ मधुशाला की हाला
तू न रहा पर तुझको हरदम
याद रखेगी मधुशाला।।२।।
-अरुण 'बेखबर'
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खूब पिलाई तुमने जग को,
भर भर प्यालों में हाला,
खूब बंधे अंगूर लता में,
नाच उठा पीने वाला,
पल भर में वह रंग सुरीले,
स्वप्न सजीले बीत गए,
सजल नयन से आज विदाई,
देती तुमको मधुशाला।।१।।
आज घटों में बिखर गई है,
फिर यम की काली हाला,
आज सुराही तोड़ चुकी है,
मृगनयनी साकीबाला,
आज उठा है एक जगत से,
वह दूजे को जाने को,
आज सजी है अंतिम डोली,
आज है अंतिम मधुशाला।।२।।
- अभिनव शुक्ला
बुझा दीप
बुझा दीप
मधुशाला वाला
जो करता था उजियाला
कौन बतायेगा हमको अब
पथ वह मदिरालय वाला
पीकर जिसको सभी एक हों
कौन पिलायेगा हाला
अब हरिवंश गये हरिपुर को
छोड सकल साकी बाला।।१।।
कम्पित कर हैं सजल नयन हैं
व्यथित आज पीने वाला
कविता की सोंधी सुगंध को
तडप रही है मधुशाला
मधुशाला को जाने वाले
सदा तुम्हें ही नमन करेंगे
श्रद्धा के कुछ शब्द सुमन ये
अर्पित करता मतवाला।।२।।
- भगवत शरण श्रीवास्तव `शरण'
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सुन कर मची सनसनी स्वर्ग
में,
कैसा कवि हाला वाला।
मदिरालय का गान सुनाता,
साथ लिए साकी बाला।
सबको अब भविष्य की चिन्ता,
कैसा दिन आने वाला।
यही रहा तो खुल जाएगी,
गली गली में मधुशाला।।१।।
आदि समय से रही छलकती,
स्वर्गलोक में थी हाला।
सुर, किन्नर, गन्धर्व, अप्सरा,
ने छक कर कितना ढाला।
बच्चन के आने के पहले,
सिर्फ नशा ही होता था।
वातावरण नहीं था कोई,
आज खुली है मधुशाला।।२।।
स्वर्गालय
में धूम मची है,
नाच रही है सुरबाला।
देखो सुन्दर गीत सुनाने,
आया कवि हाला वाला।
अब तो जश्न मनेगा ऊपर,
शब्द मधुर मुखरित होंगें।
बच्चन तुम क्या गए धरा से,
मौन हमारी मधुशाला।।३।।
मुरझाई
अंगूर लताएं,
कहां बची इनमें हाला।
झोंक समय की खा कर देखो,
टूट गया मधु का प्याला।
बन्द कपाट, किवाड़, सींखचे,
दरवाजे लटका ताला।
गाने वाला चला गया अब,
बन्द हुई बस मधुशाला।।४।।
-चन्द्र शेखर त्रिवेदी
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