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					अनुभूति में रवीद्र भ्रमर 
					की रचनाएँ- 
					
					गीतों में- 
					आज का यह दिन 
					
					आँखों ने बस देखा भर था 
					चलो नदी के 
					साथ चलें 
					
					जूही 
					के फूल 
					यायावर  | 
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					 चलो, नदी के 
					साथ चलें 
					 
					चलो, नदी के साथ चलें। 
					 
					नदी वत्सला है, सुजला है 
					इसकी धारा में अतीत का दर्प पला है 
					वर्तमान से छनकर यह भविष्य-पथ गढ़ती 
					इसका हाथ गहें 
					युग की जय-यात्रा पर निकलें। 
					चलो, नदी के साथ चलें। 
					 
					सदा सींचती जीवन-तट को 
					स्नेह दिया करती आस्था के अक्षय-वट को 
					घट को अनायास पावन पय से भर देती 
					इसकी लहरों में उज्ज्वल कर्मों के- 
					पुण्य फलें। 
					चलों, नदी के साथ चलें। 
					 
					इसके आँचल की छायाएँ 
					मानस के गायत्री-प्रात, ॠचा-संध्याएँ 
					लहरों पर इठलातीं दूरागत नौकाएँ 
					जादू की बाँसुरी बजाएँ 
					जिनमें गान ढलें। 
					 
					चलो, नदी के साथ चलें। 
					 
					१ जून २००१  |