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अनुभूति में अज्ञेय की रचनाएँ-

गीतों में-
उड़ चल हारिल
प्राण तुम्हारी पदरज फूली

छंदमुक्त में-
चाँदनी जी लो
ब्रह्म मुहूर्त : स्वस्ति वाचन
वन झरने की धार
सर्जना के क्षण
सारस अकेले
हँसती रहने देना


संकलन में-
वसंती हवा- वसंत आ गया
         ऋतुराज आ गया
वर्षा मंगल- ये मेघ साहसिक सैलानी
ज्योति पर्व- यह दीप अकेला
गांव में अलाव - शरद

क्षणिकाओं में-
धूप, नंदा देवी, सांप, रात में गांव,
सोन मछली, कांपती है,
जाड़ों में

  वन झरने की धार
मुड़ी डगर
मैं ठिठक गया।
वन-झरने की धार
साल के पत्ते पर से
झरती रही
मैने हाथ पसार
दिये, वह शीतलता चमकीली
मेरी अंजुरी
भरती रही।
गिरती बिखरती
एक कल-कल
करती रही।
भूल गया मैं क्लांति, तृषा,
अवसाद,
याद
बस एक
हर रोम में
सिहरती रही।
लोच भरी एड़ियाँ :
लहराती
तुम्हारी चाल के संग संग
मेरी चेतना
विहरती रही।
आह! धार वह वन झरने की
भरती अंजुरी से
झरती रही
और याद से सिहरती
मेरी मति
तुम्हारी लहराती गति के
साथ विचरती रही।
मैं ठिठक रहा
मुड़ गयी डगर
वन झरने सी तुम
मुझे भिंजाती
चली गयीं
सो
चली गयीं

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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