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अनुभूति में डॉ. सुशील शर्मा की रचनाएँ-

दोहों में-
मैं रावण लंकाधिपति

कुंडलिया में-
मकर संक्रांति

 

मैं रावण लंकाधिपति (दोहे)

मैं रावण लंकाधिपति, सुनलो मेरी बात।
ऋषि पुलस्त्य कुल श्रेष्ठ मैं, विप्र हमारी जात।

धन बल भुज बल शक्ति में, ज्ञान नीति विज्ञान।
सदा रहा मैं श्रेष्ठतम, अतुलित तंत्र विधान।

धीर वीर बलवान मैं, अति विशाल था वंश।
मंदोदरी सती का पति, ब्राह्मण कुल का अंश।

सत्ता सँग सामर्थ्य का, चढ़ा हुआ था दम्भ।
बहिना के अपमान से, हुआ युद्ध आरम्भ।

स्त्री के अपमान का, मुझे मिला था दंड।
स्वाभिमान हित ही लड़ा, मैंने युद्ध प्रचंड।

बदले की भर भावना, मैंने किया अधर्म।
मद मदांध होकर किया, मैंने कुत्सित कर्म।

राम परम श्री ब्रह्म हैं, था मुझको यह ज्ञान।
उनके बाणों में लिखा, मेरा मृत्यु विधान।

राम सदा से श्रेष्ठ हैं, मर्यादा के रूप।
पुरुषोत्तम श्री सत्य हैं, आदि अनंत अनूप।  

अवगुण में लंकेश है, सद्गुण राम प्रबुद्ध।
हर मानस लड़ता सदा, अन्तस् में यह युद्ध।

रावण का जलना हमें, देता है सन्देश।
सत्ता, मद निज अहम का, मिटता है परिवेश।

विजयादशमी पर्व पर लेना है संकल्प।
सत्य धर्म सद्भाव का, कोई नहीं विकल्प।

१ अक्टूबर २०२३

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