| तप से ही संसार मे तप से ही संसार में बंधु निखरता नेहजितना तपती है धरा उतना बरसे मेह
 जल से करना सीखिए विघ्नों का प्रतिकारपत्थर को भी काटती जिसकी शीतल धार
 तू तू मैं मैं से रहित जब होता है प्यारदुनिया घर सी दीखती घर लगता संसार
 संगी होना चाहिए जैसे बाती नेहमिलकर आलोकित करे जीवन रूपी गेह
 प्रियतम की प्रिय छवि निरखि पलकें लीं यों मूँदज्यों सीपी के मुख पड़ी हो स्वाती की बूँद
 आधा खाली ही दिखे आधा भरा गिलासऐसी मानस ग्रंथि का रोकें बंधु विकास
 अपनी पूजा रीतियों अपने हैं विश्वासमीरा डूबे भजन में कबिरा धुने कपास
 प्रभु की प्रभुता से बड़ा सेवक का विश्वासजिसने प्रभुता को दिया गौरवयुक्त लिबास
 वंदन इस कारण नहीं गढ़े कि शालिग्रामतुझ में जीवन इसलिए सरिता तुझे प्रणाम
 १ मई २००५ |