अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में श्रीकृष्ण माखीजा की
रचनाएँ—

अंजुमन में-
ऐसा क्यों
ज़िन्दग़ी के फासले
ज़िन्दग़ी ख्वाब
जी रहा है आदमी
टावर पर प्रहार
कल क्या हो
ज़िन्दग़ी नाच रही

गीतों में-
क्या बताऊँ मैं तुम्हें
जिन्दगी एक जुआ
ज़िन्दग़ी के ग़म
हसीन राहों में

संकलन में—
ज्योति पर्व– दो दीप
दिये जलाओ– आज खुशी से      

 

ज़िन्दग़ी एक जुआ

ज़िन्दगी तो
एक जुआ है खेलकर भी देखिये
जीतना हो कुछ अगर तो
हारकर भी देखिये

जो मिला है
ज़िन्दगी में आपको माँ बाप से
और जो कुछ सीख पाए आप ये उस्ताद से
प्यार वो शिक्षा कभी कुछ
बाँटकर भी देखिये

प्यार पाएँगे
वही हम दे सके जो हम कभी
जीत जाएँगे वही जो खो गया हमसे कभी
बन्द मुठ्ठी में है क्या कुछ
खोलकर भी देखिये

हमने पाया
क्या नहीं कुछ आज तक संसार से
चाँद तारे ये जमींन जो भी मिला भगवान से
सब नहीं पर कुछ कभी तो
बाँटकर भी देखिये

२४ दिसंबर २००३

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter