अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में प्रो. रमानाथ शर्मा की रचनाएँ-

अपने सपने
बसंत को बुलाओ
बाद में हम

  बसंत को बुलाओ

किसने कहा था
बुलाओ बसंत को।
कलियों में खिलने की ललक नहीं,
फूल  की टहनियों पर तितलियों के पाँव,
छाँव बन उभरे नहीं,
हवा की हर शोखी खोखी है,
कोयल को मियादी बुख़ार है,
भौंरों की गुमशुदों में शुमार है।
आमों के बौर सभी पतझर चुरा गया,
कंकरीली राहों चल,  कांक्रीटी जंगलों में कैद
तुम्हारा ई-मेल, कैसे ढूँढ पाएगा बसंत को।
बसंत कोई चूहा तो नही जो
डाट-काम के गुग्गुली इंजन की सर्च पर
चूं-चूं कर भागे और बताए -
'बनन में बागन में बगरौ बसंत है'।

16 मार्च 2007

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter