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अनुभूति में डॉ परमजीत ओबेरॉय की रचनाएँ-

दो कविताएँ
शरीर घट में

 

  दो कविताएँ

चक्र

वर्षा के दिन देख
सहसा कुछ कीट पतंगें
मन हो जाता है व्यग्र
सोचकर यह कि
हम भी थे कभी उन जैसे
आज हमें है घृणा उनसे
कभी उन्हें भी होती होगी हमसे
जब वे थे मनुष्य।
घृणा का यह चक्र
दिन पति दिन होता जा रहा है
चक्र

समय की आग

धधकती आग
मानव मन में
ईर्ष्या की द्वेष की
भूख की द्नंद्व की।
स्वयं को
अपनी विद्वत्ता श्रेष्ठता
महानता दिखाने की
वास्तव में आग है
पवित्रता दृढ़ता सच्चाई और
उज्ज्वलता का प्रतीक।

24 अप्रैल 2005

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