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अनुभूति में प्रो. हरजेन्द्र चौधरी की
रचनाएँ—

छंदमुक्त में—
वक्त सात कविताएँ

 

वक्त : एक

कभी हमें लूट लेता है
कभी लुटा देता है
सब-कुछ हमपर
कभी जला डालता है आशियाना
कभी देता है छप्पर फाड़कर

फ़ितरत वक्त की नेता जैसी
किसने है पहचानी
कोई उसे डाकू बताता है
कोई औघड़ दानी ....


वक्त : दो

जितना खुद बदलता है
उतना बदल डालता है
हमें-तुम्हें, सबको
कभी खूंखार हो जाता है
कभी एकदम 'गाय'
एक-सा नहीं रहता सदा
एक-सी नहीं रह सकती
उसके बारे में हमारी राय ....


वक्त : तीन

बीता हुआ कल हो
या आने वाला कल
वक्त कभी ख़त्म नहीं होता
हमेशा बना रहता है अविराम
घेरे रखता है हमें
कभी बनकर स्मृति, कभी सपना,
कभी ज़रूरी काम ....


वक्त : चार

वक्त सबका घमंड तोड़ता चलता है
सदा किसीका नहीं रहता
आज तुम्हारा है
जितना चाहो इतराओ
पर
कल हमारा होगा
तुम चाहो या न चाहो ....


वक्त : पाँच

वह प्रेमी है, सबका है
वीतराग है, किसीका नहीं है
जो सबका है वह किसीका नहीं है
जो किसीका नहीं है
वही सबका है ....


वक्त : छह

वक्त किसीका साथी नहीं
वह तो उनका साथ देता है
जो उसका साथ देते हैं
आगे निकल जाने वालों को
पकड़ लेता है दौड़कर
पीछे छूट जाने वालों को
नहीं देखता पीछे मुड़कर ....


वक्त : सात

रंग-बिरंगी पताकाएं फहराओ
लाल दरी बिछाओ
ताम-झाम फैलाओ
स्वागत-गान गाओ
कुछ भी करो, वह लौटकर नहीं आएगा

जो बीत चुका, उसे मानो और भुला दो
जो आगे आने वाला है
हमारे लिए तो बस उसे बुला दो ...

१ नवंबर २०२२

 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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