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अनुभूति में डॉ. आशुतोष कुमार सिंह की रचनाएँ -

अंजुमन में-
अपने जिगर में
आज के ज़माने में

आदमी की भीड़ में
कभी शबनम
ज़िन्दगी और मौत
जिस जगह पर
तुम्हारा फर्ज़ है

दिल में आग
धूप में छत पर
प्यार में आशना
मत समझाओ

मैं समझता ही रहा
मौत की दहलीज़
मौत से जब भी सामना होगा
लम्हा लम्हा
लिख सके तारीख़

साथ साथ चलो
होने वाली है सहर

कविताओं में
मेरा साया
सबकी बातें झूठी

संकलन में-
दिये जलाओ-घर में दिवाली हो
दीवाली आई

  धूप में छत पर

धूप में छत पर कभी बैठा किये।
किस तरह से हमको सब रूसवा किये।।

छोड़ना ही पड़ गया अब देश को,
गाँव की माटी से हम धोखा किये।

उँगलियों में दग उसके पड़ गये,
मेरी आँखें दर्द से रोया किये।

मैं चलूँगा सोच कर के वक्त ने,
कितने काँटें राह में बोया किये।

कर लिया हमसे किनारा नींद में,
थी जवानी रात भर सोया किये।

 

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