अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में विजयशंकर चतुर्वेदी की रचनाएँ -

छंदमुक्त में-
आखिर कब तक
कपास के पौधे
चूक सुधार
दस मौतें
पृथ्वी के लिए तो रुको

 

 

कपास के पौधे

कपास के ये नन्हें पौधे क्यारीदार
जैसे असंख्य लोग बैठ गए हों
अनुशासित क़तारों में हरी छतरिया खोल कर

पौधों को नहीं पता
उनके किसान ने कर ली है आत्महत्या
कोई नहीं आगा उन्हें अगोरने
कोई नहीं ले जाएगा खलिहान तक

सोच रहे हैं पौधे
उनसे निकलेगी धूप-सी रुई
धुनी जागी
बनेगी बच्चों का झबला
नौगज़िया धोती

पौधे नहीं जानते
बुनकर ने भी कर ली है खुदकुशी अबके बरस

क्वांर-कार्तिक की बदरियाई धूप में
बढ़े जा रहे हैं कपास के पौधे
जैसे बेटी बिन माँ-बाप की

२९ मार्च २०१०

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter