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अनुभूति में शुभम तिवारी शुभ की
रचनाएँ -

छंदमुक्त में-
घर
जले हुए मकान की खिड़की पर
टूटे हुये मकान से
बाहर आओ
मैं और बंजारा

 

जले हुए मकान की खिड़की पर

जले हुए मकान की
खिड़की पर बैठी
एक बिल्ली
देखती हुयी शहर को
पूछती हुयी
म्याऊँ म्याऊँ करके
क्यों जलाया मेरे घर को

उसके एकदम बाजू के मकान
पर छत पर पले कबूतर कहते
गूटर गूँ, गुटर गूँ
हम तो शांति के प्रतीक हैं
फिर भी क्यों टूटा हमारा अशियाना

सड़क की गलियों में
गाड़ियों पर भौंक कर पूछता
वह कुत्ता
क्यों कुचला गया
उसके बच्चों को

अपने मालिक से
रो रो कर पूछती
वह गाय, क्यों नकली
बछड़ा बनाया सिर्फ मेरे दूध के लिये

उधर से निकले आदमी ने कहा
जिसे लोग पागल कहते थे
वो कहता बिल्ली, कबूतर, कुत्ते
और गाय से

ये लोग अपने लोगों को जलाते हैं
अपनों का घर तोड़ते हैं
अपने बच्चों को कुचलते हैं
तुम्हारे नाम पर वोट लेते हैं
जो इंसान इंसान को मारे
वो जानवरों को क्या छोड़ेगा
सब जानवरों ने एक साथ कहा
ये दुनिया सिर्फ इंसानों की नहीं है
वो आदमी खूब ज़ोर से हँसा
और चला गया।

१ अक्तूबर २०१८

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