अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में शबनम शर्मा की रचनाएँ-

नई रचनाएँ-
अमानवता
आज़ादी
खुशबू
तस्वीर
प्रश्न
बाबूजी के बाद
मजबूरी
रंग
रिश्ते

कविताओ में-
इक माँ
इल्ज़ाम
बूढ़ी आँखें
बेटियाँ
मकान
माँ
मुसाफ़िर
रंग
सपना
सिर्फ़ तुम हो

 

मकान

मैंने अपने मकान की
सारी खिड़कियाँ बंद कर ली हैं
व गाड़े रंग के परदे भी
खींच लिए हैं
कि कोई आवाज़ मेरे कमरे तक
न आए।
फिर भी कई आवाज़ें
सुनाई देती हैं मुझे,
बुलाती हैं मुझे,
और मैं उन्हें सुनकर भी
सुनना नहीं चाहती
क्योंकि हर खिड़की जब भी
खुली, ठंडी-गर्म हवा
के सिवा कुछ न दे सकी
अब मैं बंद कमरे में
सुनना चाहती हूँ अपने
अंदर के अंधेरे सन्नाटे
की आवाज़, जलाना चाहती
इक मद्धम-सी लौ, जो
ढूँढ़ने दे मुझे
अंदर छिपी इक औरत को
जो सिसकी है वर्षों से
मेरी देह के इस मकान में निष्प्राण।

9 नवंबर 2006

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter