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अनुभूति में संजय कुंदन की रचनाएँ

कविताओं में
अधिकारी वंदना
ऐसा क्या न कहें या ऐसा क्या न करें
कुछ ऐसा था
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मित्र
यमुना तट पर छठ

 

 

 

मित्र

एक दिन मेरे सबसे क़रीबी मित्र ने
हत्यारों का समर्थन किया और बोला
उन्हें हत्यारा न कहा जाए
वे हमारी संस्कृति के रक्षक हैं
फिर उसने मुझसे संस्कृति पर
बातचीत बंद कर दी
हमारी बातचीत में अब रोज़मर्रा की चीज़ें ही रह गईं
खाना-पीना कपड़ा-लत्ता वगैरह
फिर एक दिन महंगाई पर बात निकली
और मित्र ने कहा- उन्हें ही सरकार बनाने का
मौका मिलना चाहिए
उन हत्यारों को?
- मैंने पूछा
उन्हें हत्यारा मत कहो
- वह चीखा
फिर उस दिन से महंगाई पर
हम लोगों की चर्चा बंद हो गई
अब हम लोग सिर्फ़ पुराने दिनों की बात करते
बीते दिनों को, अपने बचपन को याद करते
एक दिन बात करते-करते
हम एकदम पीछे लौट गए
लौटते चले गए इतिहास में
मित्र ने कहा
- इतिहास में सब कुछ अच्छा है
फिर से कायम होनी चाहिए
वही पुरानी व्यवस्था
ठीक कहते हैं वे लोग
मैने पूछा
- कौन, वे हत्यारे?
उन्हें हत्यारा मत कहो
- वह चीखा
उस दिन से हमलोगों की बातचीत
एकदम ही बंद हो गई
कम हो गया मिलना-जुलना फिर भी खत्म नहीं हुई मित्रता।

24 जुलाई 2007

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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