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अनुभूति में राजेंद्र "अविरल" की
रचनाएँ -

गीतों में—
सृजन स्वप्न

हास्य-व्यंग्य—
नेता पुत्र की अभिलाषा

कविताओं में—
पिता
बाबा
बिटिया पतंग उड़ा रही है
मैं जनता हूँ
हे ईश्वर

 

बाबा

बाबा खुश थे, क्योंकि
आज हुआ था, उनके बेटा
बाँटी गईं मिठाइयाँ
दी गई बधाइयाँ
बाबा खुश थे. . .

बाबा चुप थे, क्योंकि
आज आई थी
एक नन्हीं-सी गुड़िया
बाँटी नहीं गई मिठाइयाँ,
दी ज़रूर गई कुछ बधाइयाँ
पर बाबा चुप थे. . .

बाबा मौन थे, क्योंकि
हो गए थे असहाय,
जुटा रहे सामान कि
हो सकें गुड़िया के पीले हाथ
पूछा किसी ने. . .जल्दी क्या है?
पर बाबा मौन थे. . .

बाबा खुश थे, क्योंकि
पहले हो गया, बेटे का ब्याह
बहू ने रखा घर में कदम
मिला बेटे को एक हमदम
हो गईं हसरतें फिर से जवान
इसीलिए बाबा खुश थे. . .

बाबा दुखी थे, क्योंकि
कर के बेटी का ब्याह,
हो चुके थे ऋणी
कइयों का कर्ज़ चुकाने की थी चिंता
इसीलिए बाबा दुखी थे.

बाबा बहुत दुखी थे, क्योंकि
बेटा कर मतभेद
चल दिया, घर से दूर
बहू को लिए अपने साथ
छोड़ पिता को माँ के पास
अकेले जीवन भँवर में
इसीलिए बाबा बहुत दुखी थे. . .

बाबा फिर भी खुश थे, क्योंकि
आ जाती थी बेटी
जब तब पूछने
माँ बाबा के समाचार
गोदी में खिला नन्हीं नातिन को
करते हुए पश्चाताप. . .
ढलका लेते थे दो बूँद आँसू कि
लौटा रहे अपनी गुड़िया को
उसका खोया हुआ प्यार
इसीलिए बाबा खुश थे. . .

24 सितंबर 2007

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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