प्रार्थना
                      ढूँढना तो पड़ी
                      लेकिन, एक दिन
                      दिख गई मुझको
                      मेरी प्रार्थना
                      बादलों की ओट में छिपी
                      धुंध के कुहासे में लिपटी
                      दृष्टि पथ से ओझल थी
                      मेरी प्रार्थना
                      सहसा- अकस्मात नहीं
                      एक दिन- अचानक नहीं
                      एक लंबे समय तक
                      मेरे साथ-साथ चली
                      मेरी प्रार्थना
                      जैसे वृक्षों में, पहले
                      पत्ते आते हैं
                      फिर फल
                      धीरे-धीरे पक कर
                      बड़ी हुई
                      मेरी प्रार्थना
                      दिख तो गई थी
                      एक दिन, लेकिन
                      क्या सचमुच 
                      मिल गई, मुझको
                      मेरी प्रार्थना?
                      १६ जनवरी २००७