| निदा फ़ाज़ली के 
                    दोहे 
 चीखे घर के द्वार की लकड़ी हर बरसात
 कटकर भी मरते नहीं, पेड़ों में दिन-रात
 
                    रास्ते को भी दोष दे, आँखें भी 
                    कर लालचप्पल में जो कील है, पहले उसे निकाल
 ऊपर से गुड़िया हँसे, अंदर 
                    पोलमपोलगुड़िया से है प्यार तो, टाँकों को मत खोल
 मैं भी तू भी यात्री, 
                    आती-जाती रेलअपने-अपने गाँव तक, सबका सब से मेल।
 दर्पण में आँखें बनीं, 
                    दीवारों में कानचूड़ी में बजने लगी, अधरों की मुस्कान
 मैं क्या जानूँ तू बता, तू है 
                    मेरा कौनमेरे मन की बात को, बोले तेरा मौन
 चिड़ियों को चहकाकर दे, गीतों 
                    को दे बोलसूरज बिन आकाश है, गोरी घूँघट खोल
 यों ही होता है सदा, हर चूनर 
                    के संगपंछी बनकर धूप में, उड़ जाते हैं रंग
 युग-युग से हर बाग का, ये ही 
                    एक उसूलजिसको हँसना आ गया वो ही मट्टी फूल
 सुना है अपने गाँव में, रहा न 
                    अब वह नीमजिसके आगे मांद थे, सारे वैद्य-हकीम
 बूढ़ा पीपल घाट का, बतियाए 
                    दिन-रातजो भी गुज़रे पास से, सिर पे रख दे हाथ
 पंछी मानव, फूल, जल, अलग-अलग 
                    आकारमाटी का घर एक ही, सारे रिश्तेदार
 सपना झरना नींद का जागी आँखें 
                    प्यास पाना, खोना, खोजना, सांसों का इतिहास
 सीधा सादा डाकिया जादू करे 
                    महान एक ही थैले में भरे आँसू और मुस्कान
 घर को खोजें रात दिन घर से 
                    निकले पाँववो रस्ता ही खो गया जिस रस्ते था गाँव
 छोटा कर के देखिए जीवन का 
                    विस्तारआँखों भर आकाश है बाँहों भर संसार
 १६ जनवरी २००५
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