| जीवन 
कुछ खामोश-सा एक गहरा-साचुप-चुप-सा शोर है
 इस हृदय की आती जाती लहरों में
 कुछ सवाल हैं इस जेहन मेंकुछ ख्य़ाल हैं इस पागल मन में
 क्यों होता हैं एक रावण हमेशा
 हर एक राम के शासन में
 क्यों जनमता हैं एक कंसहर कान्हा के वृंदावन में
 होना रावण का क्या ज़रूरी है
 हर मर्यादा पुरुषोत्तम राम के जीवन में?
 शायद यही हैं उस विधाता का विधानकि सच को देना ही होगा हर युग में
 अपने धीरज और सहिष्णुता का इम्तिहान
 करानी ही होगी अपने अस्तित्व की पहचान
 कैसी यह विडंबना है कि इस झूठ कोअंत में देना ही पड़ता है अपना बलिदान
 क्योंकि तभी तो होता है इस दुनिया में
 सच का सम्मान, ध्यान और ज्ञान
 हैं उठता अब यह सवाल किकौन भला है कौन बुरा है
 यह प्रश्न अभी भी वहीं
 अकेला और अनुत्तरित खड़ा हैं
 
 शायद हम ही हैं कितने नादान
 इस शाश्वत सत्य से कितने हैं अंजान
 ईश्वर ने तो हमेशा ही कहा है
 बस हम लोगों ने ही इसे अनसुना किया हैं
 कि ओ प्राणी तुझमें कितना हैं अज्ञानसुन ले मेरी बात को कर के फिर से ध्यान
 काली रात से ही तो होती हैं दिन की पहचान
 यह रात ही तो दिलाती है दिन को उजला सम्मान
 अच्छाई हो या बुराई झूठ हो या सच्चाईयह दोनों ही मेरी संतान हैं भाई
 यह दोनों ही मेरी संतान हैं भाई
 इतनी छोटी-सी बात तुम्हें
 समझ में क्यों न आई
 हर प्राणी में हमको देखोहमको हर प्राणी में देखो
 रावण में भी राम को देखो
 कृष्ण को भी कंस में देखो
 सच तो स्थाई हैंझूठ अस्थाई हैं
 सच की तभी तो सदैव जीत होती आई हैं
 झूठ ने तो सदा ही पुनर्जन्म की सज़ा पाई हैं
 यह मार्ग तो तुमको ही हैं तय करनाअजर अमर होना हैं कि पुनर्जन्म लेना
 सत्य शाश्वत है अजर है अमर हैझूठ की तो छोटी-सी जीवन डगर है
 परम सत्य की भी पूर्णता पर भला कैसे होती
 यदि दुनिया में झूठ न होता बुराई न होती
 मानव को सच की सही समझ आई न होती
 अपनी दृष्टि को बदलो अपने सुकर्मों को सुधारोंपरीक्षा न होगी तो विद्यार्थी का क्या होगा
 युद्ध न होगा तो सैनिक का क्या होगा
 कैसे विभूषित होगा एक आदमी विद्वान की उपाधि से
 कैसे लगेगा सम्मान परम वीर का तुम्हारी छाती पे
 इसलिए इस परम सत्य को पहचानोसत्य ही ईश्वर है शिव ही सत्य है सत्य ही सुंदर है
 इन शब्दों को अपने अंतर्तम में ढालो कि
 अच्छाई और बुराई दोनों ही हैं ईश्वर की संतान
 इस परम सत्य को जितना जल्दी जान सके तो जान
 युगों-युगों से तो कह रहा है हमारा यह भगवानअभी भी समय है अब तो समझ ले ओ पागल इंसान
 वसुधैव कुटुंबकम वसुधैव कुटुंबकम वसुधैव कुटुंबकम
 ९ मार्च २००५ |