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माँ और मैं
माँ का जीवन सिर्फ
मेरे लिए है।
माँ धरती भी है
आकाश भी।
उसी ने मुझे दी है
पाँव तले की जमीन
और
सिर ऊपर का आसमान।
जब तुम पिता
अपनी अतृप्त आकांक्षाओं में डूबे थे
क्षितिज नापने के उपक्रम में
उछल-कूद रहे थे।
सातवें आसमानों पर झूमते थे
जवानी का जश्न मना रहे थे।
तब माँ
मेरा टिफिन पैक करती थी
होम वर्क करवाती थी
गुड फाइन मिलने पर
चूम-चूम जाती थी
गाती-मुस्काती थी
गली के क्रिकेट में लगी
हर चोट सहलाती थी
किसी भी अनिष्ट पर
उसकी आँखें फड़क आती थी।
धूप-पानी में
भूख-प्यास में
खाँसी-बुखार में
घटना-दुर्घटना में
फीस टयूशन में
मेरे साथ थी
आसपास थी
मेरे वजूद का अहसास थी।
याद हैं वे दिन
स्कूल-कालेज में
कुछ पूछने पर
व्यक्तिगत व्यस्तताओं
वैरागी वीतराग
या
आत्मरतिगत कुण्ठाओं
से विवश हो तुम
मुहावरा शैली में कहते थे
'तुम्हारे बस का रोग नहीं है पढ़ाई'
माँ पूत हो
यही कसौटी है कि तुम
कपूत हो, कपूत हो, कपूत हो।
हाँ!
उसी रोज तुम
मन के गलियारे से
दूर जा छिटके थे
माँ और मैं
एक दूसरे का पूरा संसार
बन निकले थे।
१९ अप्रैल २०१० |