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अनुभूति में दर्पण चंडालिया की रचनाएँ—

छंदमुक्त में-
बगीचे की शिकायत
रेत के घुँघरू
शून्य से एक तक का सफर
सबसे सस्ती मौत
सियाही का बाजार

  रेत के घुँघरू

रेत सागर से तब तलक नाराज रहती होगी
जब तलक वो उसके लिये
अपनी फटफटी पर
शहर से सीपियों के घुँघरू ना ले आता होगा।
उल्टी लेटी मुँह फुला,
अपनी ठुड्डी को हथेलियों के पुल पर टिका
इतराती होगी सागर की आहट सुन
फिर मासूम सागर अपनी उँगलियों से
रेत के पैरों पर गुदगुदी करता होगा ..
एक आध तगड़ी लातें पड़ जाती होंगी ..
बड़ा जोखिम भरा है भाई इश्क निभाना।

"पाइजेब क्यों ना लाए इस बार?"
अपने सर्दी के मोजे निकालते हुए पूछती होगी।
"मैं तुम्हें रोज चलते या ठहरे देखता हूँ,
तुम्हें कुछ पल थिरकते देखना चाहता हूँ-
इसलिये ये ...."
रेत सागर से योंही जुडी नहीं रहती ...
मुरादों के घुँघरू लगते हैं।

१ दिसंबर २०२२

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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