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अनुभूति में डॉ. भूतनाथ तिवारी की कविताएँ—
घूमो
जगह देता चल
ट्रैफ़िक जाम
तूती बोले
भाँपो
सरलता
सैर

 

सरलता

दिल का खुला
खुली सड़क पर
सैर करना करता पसंद
लेन–देन के मामले में मंद
उसकी पिंडलियों में दम
हाथ पैर मारने का नहीं गम
सबके साथ बिना शोर के
तय करना चाहता दूरी
उसके लिए नहीं मजबूरी
"सुदर्शन" का चहेता
किसी में फर्क नहीं करता
चाल चलकर
जाल बुनकर
रोने के बजाय
कौन नहीं चाहता जीना हँसकर?
फंसकर क्या कोई चल सकता है
फर्राटे से खर्राटे को तिकड़म नहीं
खरी–खरी चाल चाहिए
न कोई वर्ण
न कोई कोण
महज फिसलन
चाहिए एक हल्का स्पर्श
न कोई विषाद
न कोई हर्ष

९ जुलाई २००६

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