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अनुभूति में बलदेव पांडे की रचनाएँ-

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पूरी रात की नींद
साँवली

  पूरी रात की नींद

बाँछें खिल गई थी,
दरवाज़े पर खड़े देवदूत,
भरपेट भोजन का निमंत्रण
और पूरी रात की नींद के आसार देखकर,
खपरैल छज्जों को चीरकर निकलता हुआ...
चूल्हे का धुआँ...
हवन कुण्ड का पवित्र धुआँ ही तो था...
शांत,
नम और
आभारी आँखें...
संभावनाओं को तलाशते हुए,
देखने लगे थे सपने...
मुसकाते चेहरों का,
एक नई सुबह का...

२५ मई २००९

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