| माँ की महिमा नैनन में है जल भरा, आँचल में आशीष।तुम-सा दूजा नहि यहाँ, तुम्हें नवायें शीश।।
 कंटक सा संसार है, कहीं न टिकता पाँव।अपनापन मिलता नहीं, माँ के सिवा न ठाँव।।
 रहीं लहू से सींचती, काया तेरी देन।संस्कार सारे दिए, अदभुद तेरा प्रेम।।
 रातों को भी जागकर, हमें लिया है पाल।ऋण तेरा कैसे चुके, सोंचे तेरे लाल।।
 स्वारथ है कोई नहीं, ना कोई व्यापार। माँ का अनुपम प्रेम है, शीतल सुखद बयार।।
 जननी को जो पूजता, जग पूजै है सोय।महिमा वर्णन कर सके, जग में दिखै न कोय।।
 माँ तो जग का मूल है, माँ में बसता प्यार।मातृ-दिवस पर पूजता, तुझको सब संसार।।
 १८ मई २००९ |