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अनुभूति में सतपाल ख़याल की रचनाएँ-

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होली है- रंग न छूटे प्रेम का
      - बात छोटी सी है

 

केवल होना

कल इक पत्ता बोला मुझसे
मैं शाखों से जुड़ा हुआ हूँ
लेकिन तुम अपने जीवन से
जुड़े नहीं हो
पकड़ रखा है जीवन तुमने
डर-डर कर तुम सारा जीवन खो देते हो
जैसा तुमको होना चाहिए
कब होते है
विरह में तुम गीत वस्ल के गाते हो
और मिलन में यही सोचते रहते हो
कल बिछुड़ेंगे

मुझको देखो
जैसा होना चाहिए बिल्कुल वैसा हूँ
घाम-शीत सब सहता हूँ
चुप रहता हूँ
तेरे जैसे तीन पड़ाव पार करूँगा
हाँ ! मैं भी तेरे जैसे इक दिन
मर जाऊँगा
लेकिन तेरी तरह मेरा नाम नहीं है
ज़ात नहीं है, धर्म नहीं है
कोई वेद-कुरआन नहीं है
तुम में केवल एक खोट है
जो मिलता है तुमको वो स्वीकार नहीं है
सुख है तो संतोष नहीं है
दुख में तो तुम मर जाते है
जैसा होना चाहिए
बोलो,
कब होते हो
मेरी तरह केवल होना सीखो तुम
तेरा होना, होना न होकर, विद्रोह है बस
बस आगे को इक अंधी सी दौड़ है बस
कैसे होना है बस तुम सीखो मुझसे
मेरा केवल होना ही है योग मेरा
केवल होना ही है वेद-कुरान मेरा
केवल होने की युक्ति मुझसे सीखो
मेरा होना बोझ नहीं है
मेरे होने पर भी संकट आता है
लेकिन मेरा होना केवल होना है
विद्रोह नहीं है
सच पूछो तो ज़ात-मज़हब जंज़ीर है बस
और जिसको तुम ईश्वर कहते हो
वो कुछ और नहीं है
वो भी केवल होना है
लेकिन होना सरल बहुत है
इसमें ही कठिनाई है
तुमको उलझी बातों में रस आता है
क्यों है? कब से? क्योंकर है
ये धर्म है तेरा
तुमने केवल होने का रस चखा नहीं है
शायद इसीलिए ही अब
दुख के सिवा कुछ बचा नहीं है
न तुम देखने वाले हो और न हीं
तुम कोई मंज़र हो
बस तुम हो...
यही होना तुम्हारी नियति है
इस होने में रत्ति भर भी दुख ही नहीं है
सच पूछो तो सुख भी नहीं
केवल होना ही आनंद है बस
उत्सव है बस केवल होना॥

१ दिसंबर २०१८

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