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 कोई आँसू बहाता है 
कोई आँसू बहाता है, कोई खुशियाँ मनाता है 
ये सारा खेल उसका है, वही सब को नचाता है।   
बहुत से ख़्वाब लेकर के, वो आया इस शहर में था  
मगर दो जून की रोटी, बमुश्किल ही जुटाता है। 
घड़ी संकट की हो या फिर कोई मुश्किल बला भी हो 
ये मन भी खूब है, रह रहके, उम्मीदें बँधाता है। 
मेरी दुनिया में है कुछ इस तरह से उसका आना भी  
घटा सावन की या खुशबू का झोंका जैसे आता है। 
बहे कोई हवा पर उसने जो सीखा बुज़ुर्गों से 
उन्हीं रस्मों रिवाजों, को अभी तक वो निभाता है। 
किसी को ताज मिलता है, किसी को मौत मिलती है 
ये देखें, प्यार में, मेरा मुकद्दर क्या दिखाता है। 
16 अप्रैल 2007 
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