| अनुभूति में 
              धनंजय कुमार की रचनाएँ -
 अंजुमन में-थी जुबाँ पर बात क्या
 दायरा अपनी सरज़मीं का
 निगाहों में कोई इशारा
 पाप और पुण्य
 
 
  
                  
 
 |  | थी 
              ज़ुबाँ पर बात क्या थी जुबाँ पर बात क्या, और क्या 
              इशारे हो गएकुछ भँवर में रह गए, औऱ कुछ किनारे हो गए।
 वो खुदा का ख़त लिए हाथों में, चिल्लाने लगाएक दीवाने के पीछे लोग सारे हो गए।
 
 चार पल का फ़ैसला भी खुद न कर पाए तो क्या
 लड़ गए किस्मत से और किस्मत को प्यारे हो गए।
 
 वहशती ताक़त-परस्ती उस सियासत का उसूल
 हम हुए बरबाद, उनके काम सारे हो गए।
 
 जंग जन्नत में हुई थी किन्नरों के बीच भी
 कुछ ज़मीं पर गिर गए, और कुछ सितारे हो गए।
 
 कुछ तो टूटा है हमारे बीच के टकराव में
 इक नहर निकली है, देखो वो किनारे हो गए।
 ३० नवंबर २००९ |