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अनुभूति में डॉ. भगवान स्वरूप चैतन्य की रचनाएँ-

अंजुमन में-
आज कितने उदास
इन अँधेरी बस्तियों में
एक दिन ऐसा भी आएगा
फिर कई आज़ाद झरने
सो रहा है ये जमाना

 

फिर कई आज़ाद झरने

फिर कई आज़ाद झरने रेत के घर ढा गए
मरुथलों को पार कर के काफिले घर आ गए

क्यों गए बेकार सबकी प्रार्थनाओं के असर
क्यों हमारी भावनाओं के कमल मुरझा गए

सूरतें रोती हुई तस्वीर सी बनने लगीं
रंग अपनी तूलिका को देखकर शर्मा गए

हर गली कूचा वतन जैसा हमें लगने लगा
वे हमें बाजार के उस मोड़ पर ठहरा गए

हर शहादत के लिये तैयार हर पल ये ज़मीन
आजमाने जो गए थे आजमाकर आ गए

क्यों रहें खामोश अब चैतन्य सबकी बात है
इसलिये हम वक्त पर कुछ खास गजलें गा गए

२९ नवंबर २०१०

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