प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित
 
पत्र व्यवहार का पता

अभिव्यक्ति  

१६. ११. २००९

अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्रामगौरवग्रंथ दोहे पुराने अंकसंकलनहाइकु
अभिव्यक्ति हास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतरनवगीत की पाठशाला

जलती हुई कोई नदी

  छटपटाता है शिराओं में समुंदर
डबडबाती आँख में
जलती हुई कोई नदी!

चंद्रमा की छाँव में भी धूप फैली
चाँदनी के द्वार से
मैं लापता हूँ
ज्यों भटकता
डाकिए के हाथ में खत
इस शहर का अधलिखा
ऐसा पता हूँ
वृक्ष भागे जा रहे पीछे सफ़र में
सामने जैसे खड़ी
कोई अदेखी त्रासदी!

एक गहरे गर्त-सा कुछ सामने है
लग रहा, उसमें
समाता जा रहा हूँ
है गनीमत, गीत थामे हाथ मेरा

डूबता हूँ किंतु
गाता जा रहा हूँ
एक सारस पंक में जैसे फँसा है
डूबती ही जा रही है
उम्र की प्यासी सदी!

हों निठुर ग्रह, क्रूर हों नक्षत्र सारे
पर मयूरों का
नहीं नर्तन थमेगा
जिन घनों को है
बरसने की न आदत
होठ पर उनके
यही गर्जन रहेगा
मन पलाशों-सा हुआ
खुद ही जलेगा
नेकियों के घर पला जो
क्या करेगा वह बदी!

- जगत प्रकाश चतुर्वेदी

इस सप्ताह

गीतों में-

अंजुमन में-

गौरव ग्राम में-

छंदमुक्त में-

पुनर्पाठ में-

पिछले सप्ताह
९ नवंबर २००९ के अंक में

गीतों में-

अंजुमन में-

इस माह के कवि-

लंबी कविता में-

पुनर्पाठ में-

अन्य पुराने अंक

अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्रामगौरवग्रंथ दोहे पुराने अंकसंकलनहाइकु
अभिव्यक्ति हास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर नवगीत की पाठशाला

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है।

अपने विचार — पढ़ें  लिखें

 

Google

Search WWW  Search anubhuti-hindi.org
प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
-|- सहयोग : दीपिका जोशी
 
३०,००० से अधिक कविताओं का संकलन
     
३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ ०