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                  कश्मीर सिंह 
                   जन्म: ०९ फरवरी १९६६
 शिक्षा: एम.ए. (हिन्दी साहित्य), सी.ए.आई.आई.बी.
 सम्प्रति: वरिष्ठ शाखा प्रबन्धक, इण्डियन ओवरसीज़ बैंक, घण्टाघर, सहारनपुर 
                  (उ.प्र.)
 
 प्रकाशित साहित्य:
 संस्थापक सम्पादक : "राजभाषा रश्मि" (राजभाषा कार्यन्वयन समिति, 
                  लुधियाना की त्रैमासिक पत्रिका)
 सम्पादक:
 विभावरी काव्य कलश (कविता संग्रह), (विभावरी साहित्यिक, सामाजिक 
                  एवं सांस्कृतिक संस्था के कवि सदस्यों की चयनित कविताओं का 
                  संग्रह)
 राष्ट्रीय स्तर की पत्र-पत्रिकाओं में कविता, कहानी, लेख, गीत 
                  तथा लघु कथाओं का निरन्तर प्रकाशन।
 सम्मान व पुरस्कार-
 सम्मान: विभावरी सम्मान (१९९३), संगम कला रत्न एवार्ड (२००८), 
                  (साहित्य एवं प्रशासन के क्षेत्र में संगम कला ग्रुप, सहारनपुर),
 राजभाषा कार्यान्वयन के क्षेत्र में : - तूतीकोरिन पत्तन न्यास, 
                  तूतीकोरिन (तमिलनाडु), भारी पानी संयन्त्र (भारत सरकार), 
                  तूतीकोरिन तथा आयकर विभाग, लुधियाना (पंजाब) द्वारा सम्मानित।
 ई मेल-
                  
                  ksiobion@yahoo.co.in
                  
                  
                 |  | बेटियाँ चार 
                  छोटी कविताएँ- १ जीवन भर सजाती हैं
 अपनों का संसार
 ''बेटियाँ!''
 न जाने क्यों?
 लगती हैं
 भार।
 २ समयअसमय
 रोप दी जाती हैं
 अजानी माटी में,
 धान की पौध
 की तरह।
 जलवायुअनुकूल हो या
 हो प्रतिकूल,
 सम्भलना,
 खिलना, और बिखरना
 इनकी नियती होती है,
 ''बेटियाँ!''
 न जाने क्यों?
 'अभागी'
 होती हैं!
 ३ पीढ़ी दर पीढ़ी,'माँ'
 ने सिखाया
 बेटियों को
 सिर्फ़ सहना।
 दु:ख में भी,सुख में भी,
 खुश रहना।
 अभावों को भीसमझन लेना
 अपना 'सौभाग्य'।
 ४ 'माँ!'तुमने
 क्यों नहीं सिखाया?
 बेटी!
 सच को सच,
 झूठ को झूठ कहे।
 दु:ख में भी,सुख में भी,
 तटस्थ रहे।
 
 ससुराल और
 मायके जैसे,
 दो सशक्त
 किनारों के
 संरक्षण में,
 'उन्मुक्त'
 नदी की
 तरह बहे।
 १६ नवंबर २००९ |