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अभिव्यक्ति  

५. १०. २००९

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भर भुजाओं में भेंटो

 

बिखरा पड़ा है, बने तो समेटो
अपना खड़ा,
भर भुजाओं में भेंटो

समय कह रहा है, खुशी से न फूलो
जमीं में जमा जड़, गगन पल में छू लो
उजाला दिखे तो तिमिर को न भूलो
नपना पड़ा, तो सचाई न मेटो
अपना खड़ा,
भर भुजाओं में भेंटो

सुविधा का पिंजरा, सुआ मन का बंदी
उसूलों की मंडी में छाई है मंदी
सियासत ने कर दी रवायत ही गंदी
सपना बड़ा, सच करो, मत लपेटो
अपना खड़ा,
भर भुजाओं में भेंटो

मिले दैव पथ में तो आँखें मिला लो
लिपट कीच में मन-कमल तो खिला लो
'सलिल' कोशिशों से बिगड़ता बना लो
सरहद पे सरकश न छोडो, चपेटो
अपना खड़ा,
भर भुजाओं में भेंटो

- संजीव सलिल

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