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अभिव्यक्ति  

१४. ९. २००९

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भाषा वंदना

 

साँसों की है साज यह आँखों की है लाज
तन मन से वंदन करें निज भाषा का आज।

माता की ममता यही
निर्मल गंगा नीर
इसका अर्चन कर गए
तुलसी सूर कबीर।

बचपन की तुतलाहटें यौवन की मधु गीत
चौथे पन की शांति है जन्म मरण की मीत।

यह अतीत का गर्व है
है भविष्य की आस
वर्तमान का रूप है
नित्य प्राण के पास।

यही शब्द का स्पर्श है यही रूप की धूप
यही सुमन की गंध है रस की धार अनूप।

जन-जन की संकल्प यह
जन-जन की अभिलाष
तिमिर तोम में त्रासदी
अंतर्बाह्य प्रकाश।

जननी के आशीष-सी धरा शीष पर हाथ
धड़कन धड़कन में बसी साँस साँस में साथ।

--निर्मला जोशी

इस सप्ताह
हिंदी दिवस के अवसर पर

संकलन में-

गीतों में-

अंजुमन में-

छंदमुक्त में-

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पिछले सप्ताह
७ सितंबर २००९ के अंक में

गीतों में-
देवेंद्र शर्मा इंद्र

अंजुमन में-
डॉ. अश्वघोष

छंदमुक्त में-
ममता कालिया

पुनर्पाठ में-
नंद चतुर्वेदी

दोहों में-
रामनिवास मानव


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