कोई किरन नाचती जैसे
कोई किरन नाचती
जैसे, कहीं अकेले प्रात में
तुम पूनम बन धूम रही हो दीवाली की रात में
आंगन से देहरी तक पायल, नेह निमंत्रण बांटती
कोई रोशनी दरवाजे से, राह पिया की ताकती
आज अमा पा गई उजाला, तप करके सौगात में
तुम पूनम बन घूम रही हो , दीवाली की रात में
मोहित वातारण अतृप्ति, संयम के पट खोलती
हवा तुम्हारे स्पर्शों से, चंदन गंध उडेलती
भटक रही कोई बंजारिन लिये बहारें साथ में
तुम पूनम बन घूम रही हो, दीवाली की रात में
चपल दामिनी ज्यों बादल के, दिल को निकले चीरकर
तुम मरूथल की मृगतृष्णा सी, छलती रही अधीरकर
जागे कोई पुण्य तुम्हारा हाथ आ सके हाथ में
तुम पूनम बन घूम रही हो दीवाली की रात में ।
सजीवन मयंक
9 नवंबर 2007
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