जीवन की राहों में अँधियारा मिला बहुत।
मैंने उजियाले की रोली फैलाई है।।
साँस के खिलौने सब टूट बिखर जाते हैं।
लेकिन कुछ गिरने से और सँवर आते हैं।।
जीवन की राहों का ओर छोर कब पाया।
लेकिन सब राहों से पाँव गुज़र जाते हैं।।
मैंने कब जीवन नीलाम किया मृत्यु को।
मैंने तो मृत्यु पर बोली लगाई हैं।।
साँसों की पाती पर गीत रचो जीवन के।
सावन की बदरी में रंग भरो फागुन के।।
अँधियारी मावस की माँग भरो सूरज से।
पीड़ा के आँगन में चौक धरो चंदन के।।
साँसों को गिरवी मत रख देना दु:ख के घर।
मैंने खुशहाली की डोली मँगाई है।।
जीवन तो साँसों में पला ढला राग है।
दाता की बगिया से चुराया पराग है।।
आँसू की गागर से बरसे समुंदर भी।
बुझा नहीं पाए यह ऐसी ही आग है।।
पथ के कुछ शूलों को प्यार से दुलार चलो।
मैंने तो फूलों की झोली लुटाई है।।
-सजीवन मयंक
16 अक्तूबर 2006
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