जगमग नव प्रकाश हो पावन
दीप जला दो, आँगन-आँगन
ये प्रकाश के पंख रुपहले
दूर क्षितिज पर जाकर पहले
कर दें अपना यह विज्ञापन
दीप जला दो, आँगन-आँगन
धुंधले पंथ, अँधेरी राहें
पकड़-पकड़ ज्योतिर्मय बाहें
स्वर्ग बना दें, जगत अपावन
दीप जला दो आँगन-आँगन
अँधकार का नष्ट गर्व है
दीप जले हैं, ज्योतिपर्व है
उजला-उजला दामन-दामन
दीप जला दो आँगन-आँगन
मन से मन का दीप जलाएँ
आजीवन जन-जीवन गाएँ
द्वेषभाव का किए विसर्जन
दीप जला दो, आँगन-आँगन
-राममूर्ति सिंह 'अधीर'
1 नवंबर 2006
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