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शुभ दीपावली

अनुभूति पर दीपावली कविताओं की तीसरा संग्रह
पहला संग्रह
ज्योति पर्व
दूसरा संग्रह दिए जलाओ

दीप जला दो आँगन-आँगन

जगमग नव प्रकाश हो पावन
दीप जला दो, आँगन-आँगन

ये प्रकाश के पंख रुपहले
दूर क्षितिज पर जाकर पहले
कर दें अपना यह विज्ञापन
दीप जला दो, आँगन-आँगन

धुंधले पंथ, अँधेरी राहें
पकड़-पकड़ ज्योतिर्मय बाहें
स्वर्ग बना दें, जगत अपावन
दीप जला दो आँगन-आँगन

अँधकार का नष्ट गर्व है
दीप जले हैं, ज्योतिपर्व है
उजला-उजला दामन-दामन
दीप जला दो आँगन-आँगन

मन से मन का दीप जलाएँ
आजीवन जन-जीवन गाएँ
द्वेषभाव का किए विसर्जन
दीप जला दो, आँगन-आँगन

-राममूर्ति सिंह 'अधीर'
1 नवंबर 2006

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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