ज्योतिर्मय है हर दिशा
ज्योर्तिमय है हर दिशा, ज्योर्तिमय आकाश
आज अमावस छुप गई, जग में फैला हास।
स्वस्तिक जैसे कह रहे, कुशल क्षेम की बात
दीप पंक्तियों से हुई, अंधियारे की मात।
अंधकार सब सो गया, ज्योति रही है जाग
ज्योति शिखाओं से जगे, सोए जग के भाग।
मथुरा- काशी या अवध, सब में है अति हर्ष
दीप रश्मियों से झरा, जन- जन का उत्कर्ष।
माटी के इस दीप की, महिमा गाएँ वेद
इनके कारण ही मिटा, मनुज- मनुज में भेद।
तुलसी- नानक- सूर के, मन करूणा का नीर
ज्ञान दीप को बालकर, ज्योतित हुए कबीर।
जगर-मगर सब दूर है, नगर-नगर अरु गाँव
घर-घर आजा लक्ष्मी, दीप- दीप के पाँव।
निर्मला जोशी
12 अक्तूबर 2009
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