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शुभ दीपावली

अनुभूति पर दीपावली कविताओं की तीसरा संग्रह
पहला संग्रह
ज्योति पर्व
दूसरा संग्रह दिए जलाओ

दीपक हाइकु

भारी बहुत
अँधेरे की ज़िद पे
एक अकेला

औरों के लिए
हँस हँस के मिटा
माटी का दिया

- शैल अग्रवाल

 

मन का दिया
साहस कर जिया
जलता रहा

आँधी से जीता
नेह तरल पीता
पलता रहा

- पूर्णिमा वर्मन

दिये है हम
प्रज्वलित हवा में
जिए हैं हम

- डॉ. राजकुमारी शर्मा 'राज'

धरे के धरे
रह गए ठगे से
आले-दिवाले।

छाया अँधेरा
धुँधियाये कंदील
सहमे हुए।

-डॉ मनोहर अभय

 

घट जाएगा
तम का ये पसारा
दीप हुँकारा।

सदा से बैर
अँधकार का सिर
दिए के पैर।

-डॉ. जगदीश व्योम

 

दीप की बाती
रोशनी बाँटती है
जलकर भी।

-डॉ करुणेश प्रकाश भट्ट

 

रात अँधेरी
नन्हे-नन्हें दीपक
ज्योति जलाते

-सूर्यदेव पाठक पराग

 

दीप गुर्राया
अँधकार का जिन्न
रुक न पाया।

-प्रत्यूष यादव
16 अक्तूबर 2006

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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