रोशनी का गीत कोई आज तुम मुझको सुना दो
भेद जो मन के मिटा दे राग ऐसा गुनगुना दो।
दूर तक फैले उजाला।
मन रहे कोई न काला।
घूँट बन जाए अमिय का,
जो कभी था विष का प्याला।
प्रेम और संवेदना का भाव तुम ऐसा जगा दो।
भेद जो मन के मिटा दे राग ऐसा गुनगुना दो।
दीप घर-घर में जले।
हाथ कोई न मले।
बोझ सीने पर न हो
न कोई न तिल-तिल गले।
स्नेह और सौहार्द की प्रकाश गंगा तुम बहा दो
भेद जो मन के मिटा दे राग ऐसा गुनगुना दो।
डॉ. राजश्री रावत 'राज'
16 अक्तूबर 2006
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